मिमी, लक्ष्मण उतेकर द्वारा निर्देशित एक भारतीय हिंदी भाषा की कॉमेडी–ड्रामा फ़िल्म है, जिसको दिनेश विजान ने प्रोड्यूस किया है।|
एक अमेरिकी कपल राजस्थान में एक महिला को तलाशने आते हैं जो सेरोगेसी के माध्यम से उन्हें माता- पिता बनने में मदद कर सके । भानु पांडे ,जो टैक्सी ड्राइवर है, उन्हें लड़की ढूंढने में में मदद करता है। मिमी जो एक डांसर है और मुंबई जाके एक्ट्रेस बनने के सपने देख रही है, पैसे की वजह से सरोगेसी करने के लिए राज़ी हो जाती है। जब विदेशी कपल को पता चलता है की बच्चा विकलांग पैदा होने वाला है तो वो बच्चे को लेने से इंकार करदेते हैं| अब क्या होता है , क्या गर्भवती मिमी बच्चे को गिरा देती है या फिर अपने एक्ट्रेस बनने का सपना छोड़ देती है। इसी उत्तर के तलाश में ये फिल्म आगे बढ़ती है और जब उत्तर मिलजाता है तो फिर उसका अंजाम क्या होता है, वो भी बताती है।
शुरुआत में कैमरा कार के अगले शीशे वाले हिस्से से फ़िल्माया जाता है जिसमें भानु पांडे नाम का एक व्यक्ति, जो पंकज त्रिपाठी ने निभाया है, गाड़ी चला रहा है और विदेशी कपल पीछे के सीट पर बैठे हैं। | ये बात जाने के उन्हे लगता है की ये पांडे शायद हमारी मदद कर सके। वो सरोगेसी के बारे में पांडे को बताते हैं , और लड़की ढूंढने पर कमीशन देने की बात करते हैं।पांडे की टैक्सी में हनुमान जी की हवा में झुलती हूई मूर्ति है।टैक्सी के शीशे पर जय श्री राम का लिखा जाना उसके विश्वाश को दर्शाता है।
मिमी, जो कृति सनोन ने निभाया है, राजस्थान में जगह जगह घूम के डांस प्रोग्राम करती की अपने लिए पैसे इकठ्ठे करती है ताकि वो अपनी बॉलीवुड अभिनेत्री बनने का सपना को पुरा कर सके। मिमी की दोस्त शमा, जो साईं तम्हनकर ने निभाई है, उसी सब प्रोग्राम्स में गाना गा कर अपना गुजारा करती है । दोनो के बड़े बड़े सपने हैं लेकिन उसे पूरा करने के लिए , मुंबई जाने और वहां रहने के लिए जितने पैसों कि ज़रूरत है वो उनके पास है नहीं। अपने सपनो को पूरा करने के जादोजाहट में दोनो लगे हुए हैं । शमा के सपने धुंधले हो चुके हैं मगर मिमी को अब भी अपने आप पर भरोसा है। अपने सपनों को पूरा करना एक आम इंसान के लिए कितना मुश्किल है और ऊपर से ये दोनो लड़कियां है। समाज में हमेशा से लडकियों को अपना सपना पूरा करने के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ता है। समाज के तानों को सहना पड़ता हैं।लक्ष्मण उतेकर की फ़िल्म की ये दो महिलाएं मिमी और शमा इसी के प्रतीक हैं।ये फ़िल्म के चरित्र इंसानियत को बचाकर अपनी रोज़मर्रा की समस्याओं का हल तलाशने में लगे रहते है | भानु पांडे, जो एक हिंदू है ,ज़रा भी नहीं झिझकता मुसलमान बनने का नाटक करने के लिए ,क्यों की ये एक लड़की को अस्तित्य का सवाल है।
कहानी में मोड़ तब आता है जब बच्चा पैदा होने के कुछ दिन पहले विदेशी जोड़ा मिमी से वो बच्चा लेने से मना कर देते हैं। उतेकर के चरित्र यहाँ से कैसे अपने उद्देश्य को बदल देते हैं। क्यों मिमी जो सिर्फ पैसे के लिए सरोगेसी करने के लिए तैयार हो गई थी अब बच्चा गिराने से इंकार कर देती है।अभिनेत्री बननेे का सपना को पीछे छोड़ कर उस बच्चे के लिए दुनिया से लड़ती है ।भानु पांडे जिसका मकसद था अबतक सिर्फ़ पैसा ,वो अजनबी अब मिमी की मदद क्यों करता है ?
इस फिल्म के चरित्र हमेशा एक दूसरे को सुन कर हल तलाशते हैं। मतभेद कितना भी हो बात वॉयलेंस, पुलिस, कोर्ट -कचहरी या दो गुटों के दंगे तक नहीं पहुँचती।जो मिमी कभी अपने सपनों को पूरा करने के लिए दुनिया से लड़ती झहड़ती थी , आज वो अपने बच्चे के लिए लड़ती है। लेकिन इसमें उसकी दोस्त शमा , उसका परिवार और पांडे हमेशा साथ खड़े रहते हैं। दरअसल भारतीय समाज के परिवारों को प्रेरित होना चाहिए पांडे और मिमी के परिवारों से। पांडे जिसकी पत्नी कभी गर्भवती नहीं हो सकती, वो नहीं झेल रही ताने और मार अपनी पति या सास से। मिमी के माता -पिता ने उसे घर से नहीं निकाल दिया जब उन्हें पता चला की मिमी गर्भवती है ।
मिमी का बच्चा प्रतीक है एकता का , अपनापन और त्याग का। वो हमे वर्ग, जाती, समुदाय या देश से आगे बढ़ कर इंसानों और उनके बीच प्यार की बातें सीखती है। फ़िल्म में लक्ष्मण उतेकर ने समाज में बढ़ती बेरोज़गारी और संसाधन की कमी पर भी गौर किया है ।
फ़िल्म में पंकज त्रिपाठी ,कृति सेनन,साईं तम्हनकर, मनोज पह्वा और सुप्रिया पाठक मुख्य भूमिका में हैं। विदेशी कपल ने भी अपना किरदार बहुत ही अच्छी तरह निभाया है।फिल्म में ए आर रहमान ने संगीत दिया है। फिल्म इतने सारे सोशल इश्यू को दिखाते हुए भी कभी बोर नहीं करती। फिल्म क्लाइमैक्स तक प्रिडिक्टेबल हो जाती है। फिल्म को ज्यादातर कॉमेडी और लाइट हार्टेड रखा गया है। लेकिन अंत होते होते पूरा ड्रामा शुरू होजाता है। भले ही कहानी के स्ट्रक्चर मैं कुछ नयापन नहीं हो मगर फिर भी ये फिल्म अपनी बात बहुत स्पष्टता के साथ दिखाने में सखस्यम रहती है।